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वैश्विक ऊंचाई पर भारतीय खिलौना कारोबार

डॉ  जयंतीलाल
व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा हालिया प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2014-15 से 2022-23 के बीच तेज प्रगति की है।  इस अवधि में निर्यात में 239 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई, जबकि आयात में 52 प्रतिशत तक की कमी आयी।  इससे यह रेखांकित होता है कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से भारत का खिलौना उद्योग वैश्विक ऊंचाई पर है।  इस अभियान ने चीन को झटका देते हुए खिलौना निर्माण को भारत के लिए फायदे का सौदा साबित कर दिया है।  चीन से खिलौनों की खरीदारी करने वाले कई देश अब भारत का रुख कर रहे हैं।  यह कोई छोटी बात नहीं हैं क्योंकि कोई एक दशक पहले खिलौनों की भारत से मुश्किल से ही किसी तरह की खरीद होती थी।  इस समय हैस्ब्रो, मैटल, स्पिन मास्टर और अर्ली लर्निंग सेंटर जैसे खिलौने के वैश्विक ब्रांड आपूर्ति के लिए भारत पर अधिक निर्भर हैं।  इटली की दिग्गज कंपनी ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इंकास आदि भी अपना ध्यान चीन से हटाकर भारत पर केंद्रित कर रही हैं।  पांच-छह वर्ष पहले तक भारत खिलौनों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था और 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आयात किये जाते थे।  विभिन्न सर्वेक्षणों में लगातार कहा जा रहा था कि चीन से आयातित दो-तिहाई खिलौने असुरक्षित थे।  उनमें सीसा, कैडमियम और बेरियम जैसे असुरक्षित तत्व पाये गये थे।

भारतीय खिलौना उद्योग की बहुत कम समय में हासिल ऐसी सफलता की कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।  भारत का खिलौना निर्यात पांच-छह वर्षों में तेजी से बढ़कर 2,600 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।  भारत से अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, यूएइ, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों को खिलौने निर्यात किये जा रहे हैं।  इस समय भारतीय खिलौना उद्योग का कारोबार करीब 1। 5 अरब डॉलर का है, जो वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0। 5 फीसदी मात्र है, पर जिस तरह इस उद्योग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, उससे इसके इसी वर्ष तीन अरब डॉलर तक होने की संभावना है।  इस बढ़ोतरी के कई कारण हैं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार देश के लोगों से स्वदेशी भारतीय खिलौने खरीदने, घरेलू डिजाइनिंग सुदृढ़ बनाने, भारत को खिलौनों के लिए एक वैश्विक विनिर्माण हब बनाने की अपील की है।  बिक्री के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) की मंजूरी जरूरी होना, संरक्षणवाद, चीन-प्लस-वन रणनीति और मूल सीमा शुल्क बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने जैसे उपायों से खिलौना उद्योग में तेजी आयी है।  बीआइएस ने घरेलू निर्माताओं को 1,200 से अधिक लाइसेंस और विदेशी निर्माताओं को 30 से अधिक लाइसेंस प्रदान किये हैं।

सरकार के प्रयासों से भारतीय खिलौना उद्योग के लिए अधिक अनुकूल विनिर्माण परितंत्र बनाने में मदद मिली है।  वर्ष 2014 से 2020 तक की अवधि में विनिर्माण इकाइयों की संख्या दोगुनी हो गयी, जबकि आयातित वस्तुओं पर निर्भरता 33 प्रतिशत से घटकर 12 प्रतिशत हो गयी।  वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमइ) मंत्रालय 19 खिलौना उत्पादन केंद्रों की मदद कर रहा है तथा वस्त्र मंत्रालय 13 केंद्रों को डिजाइनिंग करने और जरूरी साधन मुहैया कराने में सहयोग कर रहा है।  स्वदेशी खिलौनों को बढ़ावा देने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रचार पहल भी की गयी हैं, जिनमें इंडियन टॉय फेयर 2021, टॉयकैथॉन आदि शामिल हैं।  विदेश व्यापार महानिदेशालय ने घटिया स्तर के खिलौनों के आयात पर अंकुश लगाने के लिए प्रत्येक आयात खेप का नमूना परीक्षण अनिवार्य कर दिया है।  वर्ष 2014-15 के बाद से इस बार के अंतरिम बजट तक में लगातार सरकार ने खिलौना उद्योग के विकास के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन और समर्थन देने की पहल की है।  खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टरों में स्थान दिया गया है।

मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की नीतिगत पहलों के साथ-साथ घरेलू निर्माताओं के प्रयासों से भारतीय खिलौना उद्योग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।  पर अभी भी कई बाधाएं हैं।  भारतीय खिलौना उद्योग में विकास को बढ़ावा देने के लिए रणनीतिक कार्य योजना, संबंधित एजेंसियों के बीच उपयुक्त तालमेल व चीन की तरह देश में खिलौने के विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने की जरूरत है।  खिलौनों पर जीएसटी दर में कटौती की जानी चाहिए।  अधिकांश भारतीय खिलौने ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध होने चाहिए, ताकि घरेलू खिलौनों की बिक्री बढ़ सके।  पारंपरिक और यांत्रिक खिलौनों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शीघ्र शुरू की जाए।  सुगठित खिलौना प्रशिक्षण और डिजाइन संस्थान की स्थापना को मूर्त रूप देना होगा।  बैंकों से ऋण तथा वित्तीय सहायता संबंधी बाधाओं को दूर करना होगा।  हम उम्मीद करें कि सरकार देश को खिलौनों का वैश्विक हब बनाने और खिलौनों के वैश्विक बाजार में चीन को अधिक टक्कर देने की डगर पर आगे बढ़ेगी।  घरेलू बाजार के सस्ते और गुणवत्तापूर्ण खिलौनों से बच्चों के चेहरों पर मुस्कुराहट बढ़ेगी।  अधिक निर्यात से विदेशी मुद्रा की कमाई के साथ-साथ रोजगार के मौके भी तेजी से बढ़ेंगे।

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