Breaking News
ट्रक और इनोवा की टक्कर से छह युवाओं की दर्दनाक मौत के मामले में कंटनेर ड्राइवर की हुई पहचान, जल्द होगी गिरफ्तारी 
भारतीय संस्कृति और परंपराएं गुयाना में फल-फूल रही हैं- प्रधानमंत्री
गंगा किनारे अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने वाले युवक- युवती पर मुकदमा दर्ज 
ठंड में घुटने के दर्द से परेशान हैं? राहत पाने के लिए रोजाना 15 मिनट करें ये एक्सरसाइज
….तो अब मसूरी को मिलेगी जाम के झाम से निजात
मंत्री रेखा आर्या ने सुनी सस्ता गल्ला राशन डीलर्स की समस्याएं
मेले में योगदान देने वाले कर्मी और छात्र -छात्राओं का हुआ सम्मान
जलवायु संकट अभी भी मुद्दा नहीं
यात्रा और पर्यटन बना महिला समूहों की आर्थिकी का आधार

मौसम की मार से त्रस्त जनजीवन

सुरेश भाई
इस जनवरी-फरवरी के 45 दिनों में जिस तरह से कंपकंपाती शीत और पहाड़ों पर बर्फ पडऩी चाहिए थी, वह नहीं दिखाई दी। शीतकाल में ही मार्च से शुरू होने वाली गर्मी जैसा महसूस होने लगा था। 14 फरवरी को बसंत पंचमी तक भी पूरी तरह से पतझड़ नहीं हो पाया था क्योंकि उस समय तक शीत लहर के साथ बारिश और बर्फ  के अभाव में सूखे पत्ते पूरी तरह से धरती पर नहीं गिर सके और लंबे समय तक पतझड़ वाले पेड़ सूखी पत्तियों को ही ओढ़े रहे क्योंकि नमीयुक्त शीत लहर जब चलती है तो पतझड़ वाले पेड़ों से सूखी पत्तियां झडक़र जमीन पर गिरती हैं। मौसम की इस बेरुखी से चारों तरफ सूखा ही सूखा दिखाई दे रहा है। शीतकाल में हिमालय क्षेत्र में साढ़े 4 हजार से लेकर 10 हजार फीट के बीच में जो बर्फ  पडऩी चाहिए थी, वह इस बार गायब रही। पर्वतीय क्षेत्रों और तराई वाले कृषि क्षेत्र में जहां सरसों के पीले-पीले फूल खेतों में लहलहाते दिखाई देते थे वे भी पहले के जैसे नहीं दिखाई दे रहे। गेहूं और मटर की फसल पानी की कमी के कारण पूरी तरह नहीं उग पाई।

ऊंचाई के इलाकों में सेब की फसल भी संकट में पड़ गई है क्योंकि जहां सेब होता है वहां पर शीतकाल में जब बर्फ  और बारिश पड़ती है, तभी फसल अच्छी होती है। इस शीतकाल में बारिश की कमी के कारण जंगलों में आग फैलती रही है जो 15 फरवरी के बाद भारी बारिश और बर्फबारी होने पर ही बुझ पाई। बेमौसमी बारिश ने फिर से मौसम परिवर्तन के बड़े संकेत दे दिए हैं क्योंकि इस दौरान मार्च के प्रथम सप्ताह तक बढ़ती ठंड और बारिश के साथ पहाड़ों पर हो रही बर्फवारी के कहर ने जम्मू, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में 12 लोगों की भी जान ले ली है जबकि इस समय किसानों की बोई फसल को तेज बारिश की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यहां तो इतनी तेज बारिश हुई कि हिमाचल में हिमस्खलन के कारण चिनाब नदी का बहाव रुका रहा। उत्तराखंड में चारधाम की सडक़ों पर वारिश और बर्फवारी का दौर जारी है। बरसात के जैसे मौसम में यहां  500 स्थानों पर सडक़ें बंद रहीं।

मौसम विभाग के अनुसार उत्तरी पाकिस्तान और उसके आसपास के क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से लद्दाख, कश्मीर में भी बारिश और बर्फबारी हुई है। बिहार, सिक्किम में तूफान के साथ ओलावृष्टि हुई है। पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, गुजरात, विदर्भ, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा में अलग-अलग स्थानों पर बेमौसमी बारिश हुई।  भारी बारिश के कारण हिमाचल के किन्नौर और जम्मू कश्मीर के रामबन में 300 से ज्यादा पर्यटक फंसे रहे जबकि ऐसी स्थिति बरसात में देखी जाती थी। बताया जा रहा है कि मार्च में सामान्य से अधिक वष्रा यानी 117 प्रतिशत से अधिक हो सकती है। मौसम विभाग की चेतावनी है कि इस दौरान दक्षिणी प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों, पूर्वोत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य से कम वर्ष होने की  संभावना है जिसके कारण तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा में लंबी अवधि तक लू चलने का पूर्वानुमान है।

यह स्थिति मार्च-मई के बीच में अधिक रह सकती है। यहां पर ग्रीष्मकाल की शुरुआत से ही गर्मी तेजी से बढ़ जाएगी। इसलिए अल नीनो (मध्य प्रशांत महासागर में समुद्री जल के नियमित अंतराल पर गर्म होने की स्थिति) गर्मी के पूरे मौसम में बना रहेगा। इसके बाद भी अच्छी मानसूनी वर्ष के अनुमान हैं।  यदि गर्मी और सर्दी की लंबी अवधि चलती रहेगी तो वैज्ञानिकों की वह बात सच हो जाएगी कि 2100 तक पानी ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। शोधकर्ताओं ने कहा है कि तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा तो हिमालय का 90 फीसद क्षेत्र साल भर में सुखे रहेंगे। मौसम में तेज गति के बदलाव के कारण ‘परागण’ प्रक्रिया पर भी असर पड़ेगा। तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से भी भारत में खेती की जमीन पर सूखे का खतरा 31 फीसद के बीच घट सकता है और 50 फीसद जैव विविधता के लिए आश्रय के रूप कार्य करने में मदद मिल सकती है। इसके बावजूद सूखा, बाढ़, फसल की पैदावार में गिरावट के साथ प्राकृतिक आपदाओं के खतरे बढ़ सकते हैं। हमारी हर विकास योजना में मौसम की मार का सामना करने के लिए पूरी तैयारी होनी चाहिए।

जलवायु अनुकूल प्लान गांव से लेकर शहर तक बनाना होगा। विकास कार्यों में इस बात का ध्यान रखा जाए कि हर तरह की गतिविधि चलाते समय पानी को अधिक से अधिक संरक्षित करके संतुलित उपयोग के तरीकों का पालन किया जाए। प्राकृतिक संसाधनों से चलने वाली आजीविका को नष्ट होने से बचाया जाए। छोटे और सीमांत किसानों के लिए भूमि वितरण की व्यवस्था हो ताकि खेती का दायरा बढ़ाया जा सके। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में बदलते मौसम और जलवायु के संकट से बचना मुश्किल होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top